बीसवीं शताब्दी 'वादों' का दौर रहा है : साहित्य में अनेक वाद ; कला में अनेक वाद । 'वादों' को लेकर काफ़ी विवाद रहा है । ऐसे विवादास्पद दौर में कवि शमशेर किसी भी वाद की दीर्घा में स्थिर नहीं रहे : प्रगति - प्रयोग और नई कविता से समकालीन कविता तक । शमशेर एक संश्लिष्ट अभिधा है : एक कवि ; एक चित्रकार । इस कवि के लिए कई विशेषण प्रयुक्त हुए , यथा : कवि , कवियों के कवि , हिंदी - उर्दू दोआब के कवि , जटिलताओं के कवि , अंतर्विरोधों के कवि , अल्पकथन के कवि , सौंदर्य के कवि , कालातीत के कवि , राग के कवि , शब्दों के बीच की नीरवता के कवि , भावयोगी , आदि ; और चित्रकार के लिए : एक इंप्रेशनिस्टिक चित्रकार , भावों के चित्रकार , आदि ।
शमशेर के काव्य में तत्कालीन विचार - प्रयोग का प्रभाव स्वाभाविक है । वक्तव्यों और आलोचनाओं में पड़कर उनके काव्य को बतौर निर्णय प्रगतिशील या आधुनिक , यथार्थवादी या प्रतीकवादी , रूमानी या क्लासिकी , अनुभूतिवादी या रूपवादी नहीं कहा जा सकता ।
शमशेर के काव्य की सम्यक् विवक्षा का अभाव खटकता है । शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का एक 'प्रभावशाली भवन' अपने हाथों तैयार किया जिसमें जाने से मुक्तिबोध को भी डर लगता था । मुक्तिबोध का यह डर शमशेर की गंभीर 'प्रयत्नसाध्य पवित्रता' के कारण था । शमशेर एक कवि और चित्रकार हैं , उनकी काव्यभाषा में एकाधिक कला - संवेदनाऍं हैं जो अर्थ में सक्रियता पैदा करती हैं । शमशेर का चित्रकार तरह -तरह के रंगों को संयोजित करके उन्हें सार्थकता प्रदान करता है और उनका कवि भाषिक तत्वों को मौलिकता से नई अर्थवत्ता देता है । कवि और चित्रकार दोनों के अभिव्यक्ति - कौशल शमशेर में विद्यमान हैं ।
शमशेर की काव्यभाषा में प्रयुक्त एक - एक शब्द अपना वैशिष्ट्य रखता है । स्रोत , रूप और प्रकार्य की दृष्टि से इन शब्दों का महत्व तब और भी बढ़ जाता है , जब प्रत्येक ध्वनि / शब्द / पद एक विशिष्ट क्रम - अनुक्रम में स्थापित होता है। 'चीन' , 'यूनानी वर्णमाला का कोरस' तथा'मणिपुरी काव्य साहित्य की एक विहंगम नन्हीं - सी झॉंकी ' , कविताओं में ध्वनि / शब्द / पद का एक विशिष्ट क्रम - अनुक्रम कवि की विशिष्ट मनोवृत्ति और काव्यवृत्ति का परिचायक है । शमशेर की काव्यभाषा में रंगों का स्पर्श मिलता है । (उनके चित्रों में ध्वनियों / शब्दों का स्पर्श लाज़िमी है ) उन्होंने 'घनीभूत पीड़ा' कविता में रेखाचित्रों / रेखांकनों का सहारा लिया है : यहॉं काव्यकला और चित्रकला का परस्परावलंबन है । कला के ऐसे दोआब में ही शमशेर के काव्य की भावभूमि हो सकती है ।
शमशेर का मानना है कि ''भाषा और कला के रुपों का कोई पार नहीं है।'' वे पल-छिन अवतरित सुंदरता को आत्मसात् करने का आग्रह व परिवेश को वैज्ञानिक आधार (मार्क्सवाद) पर समझने की बात करते हैं। मार्क्स ने भाषा को 'विचार का प्रत्यक्ष यथार्थ' कहा है। शमशेर के काव्य में विचार के उत्स खेजने के लिए काव्यभाषा की आंतरिक और बाह्य संरचना की पड़ताल ज़रुरी है। शमशेर के काव्यशिल्प में एक विशिष्ट संगठन दिखाई देता है; सभी स्तरों पर सशक्त और अर्थवान, यहॉं तक कि शब्दों के बीच की नीरवता भी अपने महत्व का प्रतिपादन करती है और एक सांदर्भिक अर्थ प्रदान करती है- मौन मुखर हो उठता है। शिल्प का यह संगठन काव्य के किसी भी रूप : गीत, ग़ज़ल, क़िता, शेर और रुबाई आदि में शिथिल नहीं पड़ता। शमशेर के काव्य में नए-नए लिरिकल फ़ॉर्म मिलते हैं। लिरिक स्वरूपों की विविधता को समझे बिना शमशेर की काव्य-वृत्ति को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता।
शमशेर बहादुर सिंह पहला 'मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार' और 'कबीर सम्मान' पाने वाले हिन्दी कवि हैं, वे 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' व 'तुलसी पुरस्कार' जैसे विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं। अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में उनकी कविताऍं अनूदित हुई हैं।
प्रतिमान समय-सापेक्ष होते हैं और रचना भी समय-सापेक्ष होती है, अत: रचना संदर्भाश्रित मानदंडों की मांग करती है। शमशेर के काव्य का रचनाशिल्प और शब्द-सौष्ठव अलहदा चुनौती देता है। ::
शमशेर का मानना है कि ''भाषा और कला के रुपों का कोई पार नहीं है।'' वे पल-छिन अवतरित सुंदरता को आत्मसात् करने का आग्रह व परिवेश को वैज्ञानिक आधार (मार्क्सवाद) पर समझने की बात करते हैं। मार्क्स ने भाषा को 'विचार का प्रत्यक्ष यथार्थ' कहा है। शमशेर के काव्य में विचार के उत्स खेजने के लिए काव्यभाषा की आंतरिक और बाह्य संरचना की पड़ताल ज़रुरी है। शमशेर के काव्यशिल्प में एक विशिष्ट संगठन दिखाई देता है; सभी स्तरों पर सशक्त और अर्थवान, यहॉं तक कि शब्दों के बीच की नीरवता भी अपने महत्व का प्रतिपादन करती है और एक सांदर्भिक अर्थ प्रदान करती है- मौन मुखर हो उठता है। शिल्प का यह संगठन काव्य के किसी भी रूप : गीत, ग़ज़ल, क़िता, शेर और रुबाई आदि में शिथिल नहीं पड़ता। शमशेर के काव्य में नए-नए लिरिकल फ़ॉर्म मिलते हैं। लिरिक स्वरूपों की विविधता को समझे बिना शमशेर की काव्य-वृत्ति को पूरी तरह नहीं समझा जा सकता।
शमशेर बहादुर सिंह पहला 'मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार' और 'कबीर सम्मान' पाने वाले हिन्दी कवि हैं, वे 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' व 'तुलसी पुरस्कार' जैसे विशिष्ट पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं। अनेक भारतीय और विदेशी भाषाओं में उनकी कविताऍं अनूदित हुई हैं।
प्रतिमान समय-सापेक्ष होते हैं और रचना भी समय-सापेक्ष होती है, अत: रचना संदर्भाश्रित मानदंडों की मांग करती है। शमशेर के काव्य का रचनाशिल्प और शब्द-सौष्ठव अलहदा चुनौती देता है। ::